रविवार, 29 अगस्त 2010

किसान आन्दोलन के पक्ष में

ये धरती का चीर हरन है अधिग्रहण या कुछ कह लो
माँ के सीने में खंजर है चाहे इस को कुछ कह लो
माँ की छाती से ही शिशु को यदि अलग कर दोगे तो
ये तो उस हत्या ही है चाहे इस को कुछ कह लो

उस की रोटी छीन रहे जो सब को रोटी देता है
ये उस की हत्या की सजिश सब को जो जीवन देता
यदि कृषक से उस की भूमि ही हथिया ली जाएगी
तो सुन लो ए देश वासियों जल्द गुलामी आएगी

माँ की कीमत क्या पैसों से कहीं चुकाई जा सकती
धरती तो किसान की माँ है क्या बिकवाई जा सकती
यदि यह नौबत आई तो ये किसान की हत्या है
बेटे की हत्या से माँ क्या खुश रखवाई जा सकती

बुधवार, 11 अगस्त 2010

तुम्हारा मौन

तुम्हारा मौन
कितना कोलाहल भरा था
लगा था कहींबादलों कि गर्जन के साथ
बिजली न तडक उठे
तुम्हारे मौन का गर्जन
शायद समुद्र के रौरव से भी
अधिक भयंकर रहा होगा
और उस में निरंतर
उठी होंगी उत्ताल तरंगें
तुम्हारे मौन में
उठते ही रहे होंगे
भयंकर भूकम्प
जिन से हिल गया होगा
पृथ्वी से भी बडा तुम्हारा ह्रदय
इसी लिए मैं कहता हूँ
कि तुम अपना मौन तोड़ दो
और बह जाने दो
अपने प्रेम कि अजस्र धरा
भागीरथी सी शीतल
दुग्ध सी धवल
ज्योत्स्ना सी स्निग्ध
और अमृत सी अनुपम I

शनिवार, 26 दिसंबर 2009

ruchika ko mila anyay

khne ko kanoon bhut se aur vkil bhut se hain
shahr men nyayaly bhi kitne khoob bhut se hain
fir bhi kb ruchika jaisi in knyaon ko nyay mila
hai kis liya desh ka shasn neta khob bhut se hain